भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुवाद / एड्रिएन सिसिल रिच

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:38, 29 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एड्रिएन सिसिल रिच |अनुवादक=लाल्ट...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी हमउम्र या मुझसे छोटी
किसी स्‍त्री की अपनी भाषा में लिखी
मूल कविता का अनुवाद मुझे दिखाओ ।
कुछ शब्द होंगे : दुश्मन, चूल्हा, दु:ख,
जिनको पढ़ते ही मैं जान लूँगी
वह हमारे वक़्त की स्त्री है
उसे हमारे मुद्दे, प्रेम, से मोह है
हमने इसे दीवार पर लताओं से चिपका रखा है
रोटी सा चूल्हों में पकाया है
एड़ियों पर शीशे-सा पहना है
दूरबीनों से उसे देखा है
मानो वह अकालग्रस्त समय में हमारे लिए खाने की सामग्री लाता कोई हेलीकॉप्टर है
या किसी शत्रु देश का कृत्रिम उपग्रह है
मैं उस औरत को कामकाज करते देखती हूँ :
चावल हिलाते हुए
स्कर्ट इस्तरी करते हुए
भोर तक पाण्डुलिपि टाइप करते हुए
फ़ोनबूथ से किसी को फ़ोन करने कोशिश में
एक मर्द के सोने के कमरे में फ़ोन बजता ही रहता है
उसे सुनता है कि वह किसी से कह रहा है
छोड़ो । थक कर रुक ही जाएगी ।
वह सुनती है कि वह उसकी बहन को उसकी कहानी सुना रहा है
और बहन उसकी दुश्मन बन जाती है
और बहन भी अपने ही तरीके से दुख जीने की अपनी राह बनाएगी
वह नहीं जानेगी यह सच कि दुख जीने का यही तरीका
औरों का भी है, यह ग़ैरज़रूरी और राजनैतिक भी है ।