भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमें उजाला करना है / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:52, 29 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रुपये एकत्रित करना है|
हमको गुल्लक भरना है|
इन रुपयों से वृद्धों की,
हमको सेवा करना है|
गली सड़क में इधर उधर,
बूढ़े ठेड़े दिख जाते|
लाचारी में बेचारे,
पीते न कुछ खा पाते|
इनकी झोली भरना है|
इन्हें मदद कुछ करना है|
कपड़े इनके पास नहीं,
सरदी गरमी सह जाते|
सहन नहीं जो कर पाते,
बिना मौत के मर जाते|
हमें दुखों को हरना है|
उनकी रक्षा करना है|
पर सेवा का बच्चों में,
भाव जगाना है हमको|
हाथों में लेकर सूरज,
हमें हटाना है तम को|
हमें उजाला करना है|
अंधकार से लड़ना है|