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झील पर मुग्ध / प्रेमशंकर शुक्ल
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झील पर मुग्ध
झील को निहारती है आँख
आँख का जादू
कि झील भी आँख से भेंटते
उड़ेल देती है
अपनी सारी मिठास
दोनों में इतना अपनापा - इतना एका
कि झील कहो तो आँख सम्बोधित हो जाती है
और आँख कहो तो झील बोल पड़ती है
‘हाँ' !