भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कवित्‍व जगमगाता है ! / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:28, 30 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं निषेध हूँ
एक शिला का
(दरअसल जो कि समय है !)

जितना बह जाता हूँ
उतना रह जाता हूँ
पत्‍थर होने से

अवाक्‌ प्रार्थना में
मेरा भी मौन है

बड़ी झील ! तुम्‍हारी पानी-धुली
आवाज में
मेरी भी ज़ुबान का
अंजोर है
(मद्धम ही सही)

मेरे ख़याल में
पानी का
कवित्‍व जगमगाता है !