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आ जा रे परदेसी / शैलेन्द्र

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आ जा रे परदेसी

मैं तो कब से खड़ी इस पार

ये अँखियाँ थक गईं पंथ निहार

आ जा रे परदेसी


मैं दिये की ऎसी बाती

जल न सकी जो, बुझ भी न पाती

आ मिल मेरे जीवन साथी

आ जा रे परदेसी


तुम संग जनम-जनम के फेरे

भूल गए क्यों साजन मेरे

तड़पत हूँ मैं सांझ-सबेरे

आ जा रे परदेसी


मैं नदिया, फ़िर भी मैं प्यासी

भेद ये गहरा, बात ज़रा-सी

बिन तेरे हर साँस उदासी

आ जा रे परदेसी