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किनका के ऊँच मन्दिर छनि, चउमुख दीप जरु रे / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

किनका के ऊँच मन्दिर छनि, चउमुख दीप जरु रे
ललना रे, किनका के लाली पलंगिया, किनकर धनि भुइयाँ लोटु रे
बाबा के ऊँच मन्दिर छनि, चउमुख दीप जरु रे
ललना रे, भइया के लाली पलंगिया, हुनकहि धनी भुइयाँ लोटु रे
पहिल वेदन जब आयल, किछु ने सोहायल रे
ललना रे, पियबा जे हँसथि मुसुकाय, मोहि ने सोहाय रे
एहि अवसर पिया पबितहुँ, रेशम डोरि बन्हितहुँ रे
ललना रे, अपन वेदन दय सौंपितहुँ, खूब खौंझबितहुँ रे
दोसर वेदन जब आयल, किछु ने सोहायल रे
ललना रे, पिया के बोल सँ खौंझायल, मोन अलसायल रे
एहि अवसर.......... खौंझबितहुँ रे
तेसर वेदन जब आयल, किछु ने सोहायल रे
ललना रे, पिया जे पहिरल पोशाक, मोहि ने सोहाय रे
एहि अवसर.......... खौंझबितहुँ रे
किए केलनी बाबा मोर बिआह, ससुर घर देलनि रे
ललना रे, रहितहुँ वारि कुमारि, दरद नहि बुझितहुँ रे
भनहि कयलनि बाबा मोर बिआह, ससुर घर देलनि रे
ललना रे, रहितहुँ वािर कुमारि, होरिला कतऽ पबितहुँ रे