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काँचहि बाँस के डोलिया हिंगुरे ढ़उरा गेल हे / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

काँचहि बाँस के डोलिया हिंगुरे ढ़उरा गेल हे
ललना रे ताहि चढ़ि सीता दाइ वन गेली संग देवर लक्ष्मण रे
एक कोस गेली सीता दाइ आओर दोसर कोस रे
ललना रे तेसरे मे उठल जूड़ी, वेदन लक्ष्मण पड़ाएल रे
केये आगू पाछू करत केये नाड़ी छीलत रे
ललना रे केये जायत अवधपुर खबरिया जनाओत रे
वन सँ बहार भेली वनसपतो कि तोहे मोर हितबंधु रे
सीता हे हमहीं आगू पाछू करब हमहीं नाड़ी छीलब रे
वन सँ बहार भेल नउआ कि तोहीं मोर हितबंधु रे
नउआ रे तोहीं तऽ जाही अवधपुर खबरि जनाबही रे
पहिने जनाएब राजा दशरथ तखन कौशल्या रानी रे
ललना रे सौंसे अयोध्या जनाएब राम नहि जानथि रे
गाम के पछिम एक पोखरि चून सँ चूनेटल रे
ललना रे ताहि तर रामचन्द्र ठाढ़ कि नउआ निरेखथि रे
कहाँ केर तोहें नउआ कहाँ केने जाइ छी रे
ललना रे किनका के जन्म नन्दलाल कि खबरि जनाएब रे
वनहि केर हम नउआ अवधपुर जायब रे
ललना रे रामचन्द्र के जनम नन्दलाल कि खबरि जनाएब रे
वामे हाथ लेल राम कागत दहिने हाथ बांचथि रे
ललना रे पहिला विरोग सीता बिसरथु अवधपुर आबथु रे
वामे हाथ लेल सीता कागत दहिने हाथ बांचथि रे
ललना रे पहिल विरोग कोना बिसरब अवध कोना जायब रे