भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

झूमती चली हवा याद आ गया कोई / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:36, 22 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र }} Category:गीत झूमती चली हवा, याद आ गया कोई बुझत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

झूमती चली हवा, याद आ गया कोई

बुझती-बुझती याद को, फिर जला गया कोई !


खो गई हैं मंज़िलें, मिट गए हैं रास्ते

गर्दिशें ही गर्दिशें, अब हैं मेरे वास्ते

और ऎसे में मुझे फिर बुला गया कोई !


चुप है चांद-चांदनी, चुप यह आसमान है

मीठी-मीठी नींद में सो रहा जहान है

आज आधी रात को क्यों जगा गया कोई !