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पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई / शैलेन्द्र
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पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई
इक पल जैसे इक युग बीता
जुग बीते मोहे नींद न आई
- पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई
उत जले दीपक, इत मन मेरा
फिर भी न जाए मेरे मन का अंधेरा
तड़पत तरसत उमर गँवाई
- पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई
न कहीं चंदा, न कहीं तारे
जोत के प्यासे मेरे नैन बिचारे
भोर भी आस की किरण न लाई
- पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई