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बहुत दिया देने वाले ने तुझको / शैलेन्द्र
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बहुत दिया देने वाले ने तुझ को
आँचल ही न समाए
तो क्या कीजे
बीत गए जैसे ये दिन-रैना
बाक़ी भी कट जाएँ
दुआ कीजे !
जो भी दे दे मालिक तू कर ले कुबूल
कभी-कभी काँटों में भी खिलते हैं फूल
वहाँ देर भले है
अंधेर नहीं
घबरा के यूँ गिला
मत कीजे !
देंगे दुख कब तक भरम के ये चोर
ढलेगी ये रात प्यारे फिर होगी भोर
कब रोके से रुकेगी
समय की नदिया
घबरा के यूँ गिला
मत कीजे !
बहुत दिया देने वाले ने तुझको
आँचल ही न समाय
तो क्या कीजे !