भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सजनवा बैरी हो गए हमार / शैलेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 22 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेन्द्र }} Category:गीत सजनवा बैरी हो गए हमार ! जाए बसे पर...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सजनवा बैरी हो गए हमार !


जाए बसे परदेस सजनवा, सौतन के भरमाए

न संदेस, न कौनउं ख़बरिया, रुत आए रुत जाए

डूब गए हम बीच भंवर में, करके सोलह पार

करमवा बैरी हो गए हमार !


सूनी सेज, गोद मेरी सूनी, मरम न जाने कोय

छटपट तड़पे प्रीत बेचारी, ममता आँसू रोए

ना कोई इस पार हमारा, ना कोई उस पार

सजनवा बैरी हो गए हमार !