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मरूधरी रचांव / ओम पुरोहित कागद

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पांचूं तत्वां री खान
जाण
मरुधर रै घर बारणै
बिधना कर्यो
चराचर जग रो रचाव ।
तरास-तरास
रचना करी साकार
अर अमोलक पांचूं तत्वां राकण
खिडता रै‘या
मरुधर हंदै देस ।
अब ले सारा औजार
बिधना करै
किणी और लोक मांय
मरुधरी रचाव
अर मरुधरी आज भी पळकै
इन्ने बिन्न्ौ खिंड़ियोड़ा
पांचूं तत्वां रै कणा रै ताण ।
धोरी !
ले धोबा मंाय बेकळू
उठ
परख
विधना रो मरुधर मांय
जूनो रै‘वास
जाण
बाळू रै कणा नै
जीव जगत री खान
अर दरा
बाळू रै कणा नै
जग जामण री मान