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धोरा / ओम पुरोहित कागद

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खंख उड़ो
चावै काळ पड़ो
हर घड़ी
मां रै हांचळ सा
सोरा-सोरा
मरुधर रा धोरा ।
मीठा-मीठा बोर
मतीरां री जामण
सोई है जाणै
ले इमरत रा कटोरा
लगा ढकण
गोरा-गोरा ।
सूरज जेठां
धोर्यां ऊपर
जढ चढ काठै आंख
मा मरू रीसां बळ
तन रण चंडी ज्यों कर
आग रो सिणगार करै
अर फेर
डरतो सूरजड़ो
चच्छम मांय जा भाजै
चक्कर बम्भ।
अर फेर
हेमाणी झोला दे
आखी रात मरू मा
लोरयां दे सुवावै धोरां नै
कर धोरा ठंडा-ठंडा
सोरा-सोरा !