मुगती रो जसन / ओम पुरोहित कागद
दुनियां रा चाळां
म्हे परख्या
पण
म्हानै नीं जच्या ।
न्यारी
पगड़ाड्यां बणाई
उणा कर चाल्या
चालता-चालता
म्हे लोगां नै
राणो-राण जचग्या
अर देखता-देखता‘ई‘
म्हे प्रजापति बण‘र
जाग्यां-जाग्यां
सराईजण लागग्या।
म्हे
लोगां री
आस्थावां रा
चाढावा खा-खा‘र
गोळमटोळ
धोळा सफेद निकळग्या
अर म्हे बणग्या
ठरकै रा ठाकर!
म्हे
हा तो घणा‘इ फुटरा
मनां कनां दूध रा धोयोड़ा
पण
जणा लोगां म्हानै
ओछियै दिनां मांय चाख्या
म्हे
सफा खारा निकळ्या
तूंबै री जात।
उणी दिनां स्यूं
लोगां म्हानै
पत्थरां मांय
तरास‘र
चौरायां
मींदरां मांय
बैठा दिया।
बो दिन है
अर आज रो दिन है
अब
रोजिनां
म्हारी पथराईज्योड़ी आंख्यां सामी
लोग हाका करै
थोक मांय करै
उणी चीजां नै
म्हारै साम कर‘र
चिगावै
अर टाल्ली बजा‘र
म्हा स्यूं मुगती मिला रो
जसन मनावै।