भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घर पछुअरबामे लौंग केर गछिया / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 2 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मैथिली |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= बिय...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
घर पछुअरबामे लौंग केर गछिया
ताहि तर फल्लां दुलहा ठाढ़ हे
केओ अरेखनि केओ परेखनि
केओ पुछनि निज बात हे
माय अरेखनि बाबू परेखनि
काका पुछनि निज बात हे
किए तोरा आहे बाबू बाजन थोर भेल
किए भेल कम बरिआत हे
नहि मोरा आहे काका बाजन थोर भेल
नहि मोरा कम बरिआत हे
गंगाक ओहि पार बसथि बहिनियाँ
बहिनि के दीअ ने मंगाय हे
अओतीह बहिनियाँ छेकती मोर छुअरिया
पूरि जायत मन-अभिलास हे ....