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उणनब्बै / प्रमोद कुमार शर्मा
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इयां ना सोचियो
-सबद कोनी
म्हारी अनुभूति नैं जकी होÓर पांगळी
ऊभी है बजारां री सींवां मांय
म्हैं तो फगत जोवूं उण टैम नैं
जद कीं चेतो आवसी जीवां मांय
अजै तो बै बेहोस है
पण हरेक जीव रै भीतर अेक सबदकोस है
म्हांनै बठै तांई पूगणो है
छेवट तो मायड़ भाखा रो सूरज
-ऊगणो है।