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तिरबेदी जी का व्यक्तित्व-कृतित्व / शुभम श्री

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आप शायद न जानते हों
ऐसा है कि तिरबेदी जी बड़े नामौर आलोचक हैं
जिस ज़माने में कहानियाँ लिखा करते थे
मोहन राकेश इनसे डिक्टेशन लेता था
निर्मल वर्मा लन्दन से मज़मून माँगता था
और कविताएँ तो पूछिए मत
लड़कियाँ ख़ून से ख़त लिखा करती थीं कसम रामचन्द्र शुक्ल की
ऐंवेई नहीं है भई, मेधावी व्यक्ति हैं
हिन्दी साहित्य के इतिहास में कुछ नहीं तो दस पन्ना कहीं नहीं गया है
तो जिन दिनों तिरबेदी जी का नागार्जुन, शमशेर, अज्ञेय, त्रिलोचन
गो कि सैकड़ो नामचीन अदीबों में उठना-बैठना था
नेपाल की विदेश-यात्रा कर आए थे
बस्ती के डिग्री कॉलेज में बकरियाँ गिनना अखरने लगा
और जैसी कि कहावत है -- प्रतिभा साधन की मोहताज नहीं होती
सो तिरबेदी जी मन्नू के खलिहान पर दो घण्टे पसीना बहाकर
कनस्तर भर शुद्ध सरसों तेल पेरवा आए
और वो मालिश की अपने गुरुजी की
बूढ़े की हड्डियाँ अस्सी पार भी दमदार हैं
बाबा बिसनाथ की किरपा से बलियाटिकी ख़तम हुई
और कापी कालेज नखलऊ नस्तर लींबू बोलते-बोलते
तिरबेदी जी सर्वहारा, साम्राज्य, चेतना, मुक्ति दोहराने लगे
इस प्रकार तिरबेदी जी मालिश काल समाप्त कर बाबा काल में प्रविष्ट हुए
तत्पश्चात कई प्रकार के पवित्र तिकड़म और दान-पुण्य करते हुए
कई काल तक पत्नी पुत्रादि संग सुखी जीवन व्यतीत किया