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सफल कवि बनने की कोशिशें / शुभम श्री

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ऐसा नइ कि अपन ने कोशिश नइ की
सूर्योदय देखा मुँह फाड़े
हाथ जोड़े
जब तक रुक सका सूसू
चाँद को निहारा
मच्छरों के काट खाने तक
हंसध्वनि सुना किशोरी अमोनकर का
थोड़ी देर बाद लगावेलू जब लीपीस्टिक भी सुना
कला-फ़िल्में देखीं
कला पर हावी रहा हॉल का एसी
वार एण्ड पीस पढ़ा
अंतर्वासना पर शालू की जवानी भी पढ़ी
बहुत कोशिश की
मुनीरका से अमेरिका तक
कोई बात बने
अन्त में लम्बी ग़रीबी के बाद अकाउण्ट हरा हुआ
बिस्तर का आख़िरी खटमल
मच्छरदानी का अन्तिम मच्छर मारने के बाद
लेटे हुए
याद आई बूबू की
दो बूँदें पोंछते-पोंछते भी चली ही गईं कानों में
तय करना मुश्किल था
रात एक बजे कविता लिखने में बिजली बर्बाद की जाए
या तकिया भिगोने में
अपन ने तकिया भिगोया
आलोचक दें न दें
अलमारी पर से निराला
और बाईं दीवार से मुक्तिबोध
रोज़ आशीर्वाद देते हैं
कला की चौखट पर
बीड़ी पिएँ कि सुट्टा
व्हिस्की में डूब जाएँ कि
पॉकेटमारी करें
सबकी जगह है ।