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अेक सौ तीन / प्रमोद कुमार शर्मा

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डरां जणै
जोर-जोर सूं बोलां
-तोलां
आपरै विस्वास नैं घड़ी-घड़ी
बातां भी करां आपां बड़ी-बड़ी
फेरूं भी डर मिटै कोनी
बो तो मिटै सत्संग सूं
पण भाखा रो इस्कूल कठै
-खोलां
बो तो लोक रो चित है
पण :
बिना निज भाखा रै विक्षिप्त है
अब किस्यै बैद नैं
-जाय'र बोलां!