भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अेक सौ चौबीस / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:24, 4 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रमोद कुमार शर्मा |संग्रह=कारो / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बै निज भाखा मांय
-सावचेत हा
जका उडारी भरग्या सातवैं अकास तांई
बांरी जातरा ही अंधारै सूं परकास तांई
बांरी ढाळ
तोड़ो काळ
मौत पूगगी है मांयलै अेसास तांई
जाग्या कोनी आपां रोळै मांय
इयां के :
-आपां अचेत हा।