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अेक सौ छत्तीस / प्रमोद कुमार शर्मा
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जाणै कुण
कुण जाण सकै
थारै अक्षर रूप नैं
थारी छांव अर धूप नैं
सै थारी ही भाखा है
थां बिन कुण जणा सकै
क्यूंकै :
अक्षर ही अक्षर बणा सकै।