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अेक सौ तरेपन / प्रमोद कुमार शर्मा

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नान्हीं-सी जांटी रो बूंटो
-खूंटो
है धरती री कोख मांय भाखा रो
बडो खयाल राखै सांवरो
आपरी इण नान्हीं-सी साखा रो

इणी ढाळ म्हारी कविता है
पण कठै राम अर सीता है
च्यारूं कूंटा बजार है
नान्हीं-सी जांटी री छोडो
मोटोड़ो बरगद भी लाचार है।