भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिचपन / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:02, 4 जुलाई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता जद पूरी हूज्यै
उण बगत सबद बावड़ज्यै पाछा
-अकास मांय
आंख्यां भलांई गडायां राखो परकास मांय
आपनैं सबद नीं लाधसी
-अैसास मांय।