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लौहो-क़लम / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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हम परवरिशे-लौहो-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे
असबाबे-ग़मे-इश्क बहम<ref>इकट्ठा</ref> करते रहेंगे
वीरानी-ए-दौराँ पे करम करते रहेंगे
हाँ, तल्ख़ी-ए-अय्याम<ref>दिनों की कटुता</ref> अभी और बढ़ेगी
हाँ, अह्ले-सितम मश्क़े-सितम करते रहेंगे
मंज़ूर यह तल्ख़ी, ये सितम हमको गवारा
दम है तो मदावा-ए-अलम<ref>दुख का इलाज</ref> करते रहेंगे
मयख़ानः सलामत है तो हम सुर्ख़ी-ए-मय से
तजईने-दरो-बामे-हरम<ref>मस्जिद के द्वार और छत की सजावट</ref> करते रहेंगे
बाक़ी है लहू दिल में तो हर अश्क से पैदा
रंगे-लबो रुख़सारे-सनम करते रहेंगे
इक तर्ज़े-तग़ाफ़ुल है सो वो उनको मुबारक
इक अर्ज़े-तमन्ना है सो हम करते रहेंगे
शब्दार्थ
<references/>