भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिछलाहा भुइयां के रेंगई-ला पूंछो झन / कोदूराम दलित

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:00, 8 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कोदूराम दलित |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} {{KKCatChhatt...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिछलाहा भुइयां के रेंगई-ला पूंछो झन,
कोन्हों मन बिछलथें, कोन्हों मन गरिथें ।
मउसम बहलिस, नवा-जुन्ना पानी पीके,
जूड़-सरदी के मारे कोन्हों मन मरथें ।।

कोन्हों मांछी-मारथे, कोन्हों मन खेदारथें तो,
कोन्हों धुंकी धररा के नावे सुन डरथें ।
कोन्हों-कोन्हों मन मनमेन मैं ये गुनथे के
"येसो के पानी - ह देखो काय-काय करथें" ।।