भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लहरों में साथ रहे कोई / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:21, 25 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन }} बाँह ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाँह गहे कोई


अपरिचय के

सागर में

दृष्टि को पकड़ कर

कुछ बात कहे कोई ।


लहरें ये

लहरें वे

इनमें ठहराव कहाँ

पल

दो पल

लहरों के साथ रहे कोई ।