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आलोचक / त्रिलोचन

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कभी तिलोचन के हाथों में पैसा धेला

टिका नहीं । कैसे वह चाय और पानी का

करता बन्दोबस्त । रहा ठूँठ-सा अकेला ।

मित्र बनाए नहीं । भला इस नादानी का


कुफल भोगता कौन । यहाँ तो जिसने जिसका

या, उसने उसका गाया । जड़ मृदंग भी

मुखलेपों से मधुर ध्वनि करता है । किसका

बस है इसे उलट दे । चाहो रहे रंग भी


हल्दी लगे न फिटकरी, कहाँ हो सकता है ।

अमुक-अमुक कवि ने जमकर जलपान कराया,

आलोचक दल कीर्तिगान में कब थकता है ।

दूध दुहेगा, जिसने अच्छी तरह चराया ।


आलोचक है नया पुरोहित उसे खिलाओ

सकल कवि-यश:प्रार्थी, देकर मिलो मिलाओ ।