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बावरा पेड़ / प्रेमशंकर शुक्ल

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कल ही भेंट हुई
उस बावरे पेड़ से
बड़ी झील !
तुम्‍हारे खिलाफ़ सुनना नहीं चाहता वह
एक शब्‍द

बहुत प्‍यार है तुम्‍हारे पानी से उसे
कहता है पीछे हटो लहरों की संख्‍या भूल जाऊँगा

उसकी टहनियों पर बैठ
चिडि़याँ जब पानी के मीठे-मीठे पद गाती हैं
वह मस्‍तमौला पेड़
ऐसे झूमता है
कि मौसम को हँसी आ जाती है !