भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कोलाँस / प्रेमशंकर शुक्ल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 15 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ी झील को भरी-पूरी देख कर
लहक उठती है कोलाँस नदी

सुनते हैं आजकल कोलाँस भी
झेल रही है सूखे की मार

दूरदराज से पानी लाकर
कोलाँस ही भरती रही है बड़ी झील का पेट
बारिश का अभाव कि कोलाँस भी
मन मसोस कर रह जाती है

कोलाँस सूखती है
तो बड़ी झील के मन में उदासी बैठ जाती है
और बड़ी झील मछरी की तरह
छटपटाती रहती है गाद में रात-दिन !