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सावन के अन्धो! / बुद्धिनाथ मिश्र

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कब तक पूरब को पश्चिम का
पाठ पढ़ाओगे ?
नंदन-कानन को मरुथल की
राह दिखाओगे ?

मरी हुई सीपियाँ समय की
कब तक बेचोगे ?
गाजर-घास अविद्या की
तुम कब तक सींचोगे ?

धरती की धड़कन को जानो
सावन के अन्धो !
नभ के इंगित को पहचानो
सावन के अन्धो !

वट-पीपल के वृक्ष नहीं,
तुम बोन्साई घर के
धूप-हवा से दूर रहे
हो ज्ञान बिना जड़ के ।

गौरांगों के गमलों में
मधुमास तुम्हारा है
अंधा-बहरा, पतझर का
इतिहास तुम्हारा है ।

पहले तो अपनों को जानो
सावन के अन्धो !
फिर जग का उत्कर्ष बखानो
सावन के अन्धो !

तम से निकल ज्योति को पाना
शिक्षा की मंज़िल
धर्म-सत्य का दीप जलाना
शिक्षा की मंज़िल ।

रस्सी को जो साँप बताए
ज्ञान नहीं होता
काटे जो भविष्य का तरु
विज्ञान नहीं होता

सारा देश असहमत मानो
सावन के अन्धो !
मुक्त करो खुद को नादानो
सावन के अन्धो !