भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तूतनख़ामेन के लिए-6 / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:14, 27 दिसम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=काल को भी नहीं पता / सुधीर सक्सेन...)
तुम जिए
और ज़िन्दगी जी तुमने भरपूर
ज़िन्दगी की
आँखों में आँखें डालकर
जिए आज में
और सोची कल की
भूलकर
कि काल को भी नहीं पता
कल का पता-ठिकाना ।