भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जनगीत / बुद्धिनाथ मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:45, 20 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
छिछली बातें करते हो जी !
इस पर, उस पर मरते हो जी !
मेरे पास नहीं आते क्यों
शायद मुझसे डरते हो जी !
इक छोटे-से काम को लेकर
किसके पाँव पकड़ते हो जी !
भाषा मजहब क्षेत्र जाति पर
लड़ते और झगड़ते हो जी !
लेकर नाम देश-सेवा का
जाने क्या-क्या करते हो जी !
फट जाएगा पेट तुम्हारा
इतना काहे भरते हो जी !
जितना ऊँचा चढ़ते हो
उतने ही तले उतरते हो जी !
मार-मार भूसा भर देंगे
खड़ी फ़सल क्यों चरते हो जी !
तुम भी मर जाओगे ‘अनाथ’ ही
क्यों इस तरह अकड़ते हो जी !