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जनगीत / बुद्धिनाथ मिश्र

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छिछली बातें करते हो जी !
इस पर, उस पर मरते हो जी !
मेरे पास नहीं आते क्यों
शायद मुझसे डरते हो जी !

इक छोटे-से काम को लेकर
किसके पाँव पकड़ते हो जी !
भाषा मजहब क्षेत्र जाति पर
लड़ते और झगड़ते हो जी !

लेकर नाम देश-सेवा का
जाने क्या-क्या करते हो जी !
फट जाएगा पेट तुम्हारा
इतना काहे भरते हो जी !

जितना ऊँचा चढ़ते हो
उतने ही तले उतरते हो जी !
मार-मार भूसा भर देंगे
खड़ी फ़सल क्यों चरते हो जी !

तुम भी मर जाओगे ‘अनाथ’ ही
क्यों इस तरह अकड़ते हो जी !