भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पूरा कुछ कैसे बनाऊँ / लाल्टू

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:19, 20 जुलाई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विषय अधूरा समझ
अधूरी

जगत अधूरा सोच
अधूरी

दृश्य अधूरा दृष्टि
अधूरी

जिनसे
मिलता हूँ वे अधूरे

पूरा-पूरा
सोचने को तड़पता मन

नाव
लेकर समुद्र में गए हैं
मछुआरे

आधी
सी बहती हवा में आ-आकर
सुनाती हैं लहरें

गीत अधूरे

फिसलती
रहती हाथों से

शाम
अधूरी ।