मुहरबन्द हैं गीत
खोलना दो हज़ार सत्तर में ।
जब पानी चुक जाए
धरती सागर आँखों का
बोझ उठाए नहीं उठे
पक्षी से पाँखो का
नानी का बटुआ
टटोलना दो हज़ार सत्तर में ।
इसमें विपुल वितान तना है
माँ के आँचल का
सारी अला-बला का मंतर
टीका काजल का
नौ लख डालर संग
तोलना दो हज़ार सत्तर में ।
छूटी आस जुडाएगी
यह टूटी हुई क़सम
मन के मैले घावों को
यह रामबाण मरहम
मिल जाए तो शहद
घोलना दो हज़ार सत्तर में ।