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बोझ / उंगारेत्ती

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भरोसा करते हुए

अपने सन्त अंतोनी की तावीज़ पर

हल्के से गुज़र जाता है

वह किसान


इधर यह अस्थि-पिंजर

बिना किसी मरीचिका के

अपने भरोसे

ढोता रहा हूँ

अपनी आत्मा ।