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दिल्ली की तस्वीर / रमेश रंजक

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मुँह देखा आचरण यहाँ का
बोझिल वातावरण यहाँ का
झूठे हैं अख़बार यहाँ के
अन्धा है जागरण यहाँ का
घने धुँधलके में डूबी हैं सीमाएँ परिवेश की
                यह महान नगरी है मेरे देश की

है तो राजनीति की पुस्तक
लेकिन कूटनीति में जड़ है
हर अध्याय लिखा है आधा
आधे में आधी गड़बड़ है
        चमकीला आवरण यहाँ का
        उल्टा है व्याकरण यहाँ का
        शब्द-शब्द से फूट रही है गन्ध विषैले द्वेष की
                          यह महान नगरी है मेरे देश की

धूप बड़ी बेशरम यहाँ की
चाँदी की प्यासी हैं रातें
जीती है अधमरी रोशनी
सुन-सुन कर अधनंगी बातें
        सुबहें हैं चालाक यहाँ की
        शामें हैं नापाक यहाँ की
        दोपहरी मेज़ों पर फैलाती बातें उपदेश की
                    यह महान नगरी है मेरे देश की

उजली है पोशाक बदन पर
रोज़ी है साँवली यहाँ की
सत्य अहिंसा के पँखों पर
उड़ती है धाँधली यहाँ की
        नागिन-सी चलती ख़ुदगर्ज़ी
        चादर एक सैकड़ों दर्ज़ी
        बिकती है टोपियाँ हज़ारों अवसरवादी वेश की
                        यह महान नगरी है मेरे देश की

छू कर चरण भाग्य बनते हैं
प्रतिभा लँगड़ा कर चलती है
हमदर्दी कुर्सी के आगे
        मगरमच्छ आँखें मलती है
        आदम, आदमख़ोर यहाँ के
        रखवाले हैं चोर यहाँ के
        जिन्हें सताती है चिन्ता कोठी के श्रीगणेश की
                          यह महान नगरी है मेरे देश की

जिसने आधी उमर काट दी
इधर-उधर कैंचियाँ चलाते
गोल इमारत की धाई छू
उसके पाप, पुण्य हो जाते
        गढ़ते हैं कानून निराले
        ये लम्बे नाख़ूनों वाले
        देसी होठों से करते हैं बातें सदा विदेश की
                       यह महान नगरी है मेरे देश की