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ओ रात / उंगारेत्ती
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भोर की फैलती अकुलाहट
प्रकाशित कर देती है जाल शाखाओं का
शोकाकुल जागरण ।
पत्तियो, बहन पत्तियो
मैं सुन रहा हूँ
तुम्हारा विलाप ।
पतझर
मरणासन्न मधुरताएँ ।
ओ यौवन
अभी-अभी बीते हुए ।
यौवन के उच्चाकाश
बेलगाम धावित ।
और मैं
पहले से ही परित्यक्त
खोया हुआ
इस दमित विषाद में
रात लेकिन
बिखेर देती है दूरियाँ
महासागरीय ख़ामोशियाँ
मायामय
तारक-नीड़ ।
ओ रात !