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ज़हरीला उत्पीड़न / रमेश रंजक
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ओ मेरे
दुखभोगी मन
ये तुझको क्या हुआ ?
कहाँ गया आँखों का नदिया-सा नीलापन
मछली मुस्कानों का बाँकापन, सीधापन
बंसी में बाँध चला
कोई छलिया मछुआ
पंखी सपने कैसे नीड़ बनाएँ सुन्दर
जब तुझ पर दमक रहे पतझर के हस्ताक्षर
तन ऐसे सूख गया
जैसे सूखे महुआ
पानी में चिकनाई-सी फैली प्रीत-चुभन
अँग-अँग बींध रहा ज़हरीला उत्पीड़न
बिछुआ-सा काट रहा
पल-पल बैरी बिछुआ