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आँसू का संखिया / रमेश रंजक

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भरी-भरी बाखर है
आखर न बोलना
सिरफिरी शिकायत की
गठरी न खोलना
गली-गली उँगलियाँ उठाएगी
गोपनीय बात फैल जाएगी

भाँवर ने बाँध दिया
आँखों से पानी
निगल गई आँसू का
संखिया जवानी
         जब अन्धे मौसम ने,
         करी छेड़खानी
         शब्द छुली पीर बनी,
         गीत औ’ कहानी
अनबोली चाँदी से
इनको, न तोलना
पंखहीन प्यास फड़फड़ाएगी
गोपनीय बात फैल जाएगी