भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अक्षरों का सौदागर / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 13 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आधी रात ओढ़ कर
आधी रैन बिछा कर
मैंने आधी उमर काट दी पीड़ा गा कर
मेरे आँगन में जितने क्षण बिखरे दुख के
शब्द बना डाले मैंने अपने आमुख के
उमड़-घुमड़ कर आँसू
टीप गए हस्ताक्षर
छन्द पिरोने लगी उदासी टूटे मन की
जाने कैसे बूँद हो गई, आग बदन की
गीत पुनीत हो गए
गंगाजली चढ़ा कर
पंक्तिबद्ध दिन हुए ज़िन्दगी हुई संकलन
बनवासी सूनेपन को दे दिया सिंहासन
मन-महीप हो गया
अक्षरों का सौदागर