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उम्र नींद की / रमेश रंजक

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खिड़की क्या खोली
रात तोड़ डाली
कुछ उम्र नींद की, बढ़ जाने देतीं

                    गीत के चरण से
                    बँधे-बँधे छह दिन
                    सचमुच मैंने काटे
                    घड़ियाँ गिन-गिन

छुट्‍टी का दिन
ध्रुवपंक्ति सरीखा था
थोड़ी-सी मस्ती चढ़ जाने देतीं
कुछ उम्र नींद की, बढ़ जाने देतीं