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मल्लाहों का गीत / रमेश रंजक

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सारे सहारे किनारे से छूटे
पानी के आँगन, उगे बेलबूटे
चपुआ सम्भालो रे, जल के सिपैया !
                        ओ मेरे भैया !

पालों से कह दो कि बाहें उठाएँ
ठण्डी हवाओं को सीने लगाएँ
अनब्याही ख़ुशियों को झूले झूलाएँ
पस्ती को मस्ती की लोरी सुनाएँ
गूँजे कछारों में हैया-हो हैया
                  ओ मेरे भैया !

लो चपुआ ने काटी नीलम की चादर
जैसे किरनिया ने फाड़े हों बादर
मौसम ने रंगों की कंजूसी छोड़ी
नैया चली जैसे दुल्हन निगोड़ी
सलवटिया चुनरी पै जैसे चिरैया
                    ओ मेरे भैया !

लहरों की थापों से काँपे किनारे
झोंकों में लहराए अरमाँ हमारे
दरपन की बाँहों में झूले नज़ारे
शाखों ने गजरीले गेसू सँवारे
केशों के रेशों में दमके रुपैया
                   हो मेरे भैया !