भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किरन के पथ पर / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 14 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=किरण क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाता जा मन द्वारे-द्वारे, गाता जा हिम्मत मत हारे
कोई गीत कभी जीवन में कुछ तो उजियारा लाएगा

लहरों को दे रहे थपथपी काव्य-गंग के सुदृढ़ किनारे
खींच रहे हैं बाँह दीप की नील-गगन के चाँद-सितारे
गाता जा मन साँझ-सकारे, गा-गा गीतों के बनजारे
किसी दिवस नवयुग अधरों से तू भी चुमकारा जाएगा

शब्दों में ऐसा जादू भर गाए बनकर दर्द बटोही
जिधर जाए गीतों का स्वर हर गगरी भरे आँख निर्मोही
गा-गा सपनों के मतवारे, गा-गा साँसों के हरकारे
तेरे दर्दीले गीतों को हर दिल दुखियारा गाएगा

निगल रहा है कफ़न रात का सन्ध्या के सुनहरी बदन को
किरनों की चूनरी उढ़ा दे अपने गीतों के बचपन को
गा जब तक ये घन कजरारे, शशि है बादल के पिछवारे
हो न निराश किरन के पथ पर कब तक अँधियारा छाएगा

भूमि-मंच पर, मरुथल रोकर, लहरा कर गाती हरियाली
साहस इकतारे पर तू गा, गीत भरी बगिया के माली
गा-गा फूलों के रखवारे, गा कलियों के प्राण पियारे
दिशा-दिशा सुरभित कर ख़ुद ही पतझर छुटकारा पाएगा