भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हो आज़ाद किरण... / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:14, 20 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह= रमेश र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर-घर खील-खिलौने लाई ।
बच्चों की दीवाली आई ।।

             उतर गोद से मुन्नू आया
             फुलझड़ियों को हाथ बढ़ाया
             राधा लगी डराने उसको
             ’ताता है’ छूना मत इसको
             मुन्नू को आ गई रुलाई ।

जा पहुँचा माँ के आँचल में
सबकी करी शिकायत पल में
साथ लिए पापा जी आए
अपने संग पटाखे लाए
मुन्नू ने फुलझड़ी जलाई ।

             छोटी-सी कन्दील उठाए
             बल खाते गप्पू जी आए
             बोले -- चिनगाली अनाल की
             छब छे ऊँची छिब कुमाल की
             पप्पू को यह बात न भाई ।

नाचे ताली बजा-बजा कर
कमरे में आँगन में छत पर
खील-बताशे जेबों में भर
बोल रहे थे तुतलाते स्वर
चाचा जी ला रहे मिथाई ।

             माचिस लाल हरी पर झँझट
             कहीं चटाई होती फट-फट
             चकरी घूम रही थी फर-फर
             जलती मोमबत्तियाँ ऊपर
             नभ को छूती चली हवाई ।

बच्चों का यह छोटा-सा दल
काट रहा है तम की साँकल
हो आज़ाद किरण का जीवन
सच है भोर धरा का दर्पण
हर मन में यह बात समाई ।

             घर-घर खील-खिलौने लाई ।
             बच्चों की दीवाली आई ।।