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आँखों देखा / केदारनाथ अग्रवाल
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आज
- अभी आँखों से
पर्वतीय निर्जन के
- धुन्ध-भरे घेरे में,
क़ैद खड़े पेड़ों के
- मौन पड़े डेरे में,
- पातहीन डालों के
आख़िरी किनारों पर
- पीत पगे फूलों के
आरसी कपोलों पर
दिन में ही
- जगर-मगर
दीप जले देखे हैं ।