तुमहि तजि जाऊँ कहाँ अब प्यारे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(राग सोहनी-तीन ताल)
तुमहि तजि जाऊँ कहाँ अब प्यारे।
दीखत नायँ कतहुँ कोउ मेरौ, सब ही मो तैं न्यारे॥
ममता सहित रहत सब निज घर लिए साथ भय-सोक।
प्रभु-पद-पद्म एक घर मेरो आनँद-धाम असोक॥
सब के धन, जस, बस्तु, पुत्र-पितु, पति-पतिनी, परिवार।
तुम्हीं एक मेरे सब प्रानि-पदार्थ सगे संसार॥
काम अनेक महत् तिन के तिन को गुरुतर दायित्व।
एक काम मम दरसन-सुमिरन सेवक अमित महव॥
चलत सबहि अपने-अपने पथ, पथ रिजु-कुटिल अनेक।
मेरो पथ-पाथेय परम प्राप्तव्य तुमहि बस एक॥
जग में वेई पूज्य परम प्रिय वेई आदर-जोग।
जो सब कौं सुख-हित साधैं नित जो सेवैं सब लोग॥
अकर्मन्य आलसी नहीं सेवा की मन कछु बात।
एक तुहारे चरननि में मैं पर्यौ रहूँ दिन-रात॥
ऐसे करतब-रहित प्रमादी कौं नहिं जगमें ठौर।
तुमहि एक आश्रय पतितनके नहिं अग-जग कोउ और॥