भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मो कों कछु न चहिये राम / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:38, 24 अगस्त 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

  (राग आसावरी)

 मो कों कछु न चहिये राम।
 तुम बिन सबही फीके लागैं, नाना सुख धन-धाम॥
 सुंदरि, संतति, सेवक, सब गुन, बुधि बिद्या भरपूर।
 कीरति, कला-निपुनता, नीती, इन कौं रखिये दूर॥
 आठ सिद्धि, नौ निद्धि आपनी और जनन कौं दीजै।
 मै तौ चेरौ जनम-जनम-कौ, कर धरि अपनौ कीजै॥