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चहौं बस एक यही श्रीराम / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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  (राग केदारा-ताल तीन ताल)

 चहौं बस एक यही श्रीराम।
 अबिरल अमल अचल अनपा‌इनि प्रेम-भगति निष्काम॥
 चहौं न सुत-परिवार, बंधु-धन, धरनी, जुवति ललाम।
 सुख-वैभव उपभोग जगतके चहौं न सुचि सुर-धाम॥
 हरि-गुन सुनत-सुनावत कबहूँ, मन न हो‌इ उपराम।
 जीवन-सहचर साधु-संग सुभ, हो संतत अभिराम॥
 नीरद-नील-नवीन-बदन अति सोभामय सुखधाम।
 निरखत रहौं बिस्वमय निसि-दिन, छिन न लहौं बिस्राम॥