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ये हसीं पल कहाँ से लाओगे / रविकांत अनमोल

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ये हसीं पल कहाँ से लाओगे
वक़्त ये कल कहाँ से लाओगे

भीग लो मस्तियों की बारिश में
फिर ये बादल कहाँ से लाओगे

ज़िन्दग़ी धूप बन के चमकेगी
माँ का आँचल कहाँ से लाओगे

वक़्त के हाथ बेचकर साँसें
ज़िन्दगी कल कहाँ से लाओगे

जब जवानी निकल गई प्यारे
दिल ये पाग़ल कहाँ से लाओगे

ज़िन्दगी बन गई सवाल अगर
इसका तुम हल कहाँ से लाओगे

नर्म ये घास जिस पे चलते हो
कल ये मख़मल कहाँ से लाओगे

ये मधुर गीत बहते पानी का
कल ये क़लक़ल कहाँ से लाओगे

ये शिकारे ये दिलनशीं मंज़र
और यह डल कहाँ से लाओगे

अट गई जब ज़मीन महलों से
दाल चावल कहाँ से लाओगे

बाग़ जब कट गए तो ऐ अनमोल
ये मधुर फल कहाँ से लाओगे