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वास्ता दीजे इल्तजा कीजे / रविकांत अनमोल

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वास्ता दीजे इल्तिजा कीजे
दिल समझता नहीं है क्या कीजे

जान देने से कुछ नहीं होता
ज़िन्दा रहने का हौसला कीजे

अश्क गीतों में ढाल कर अपने
खुश्क़ आँखों से रो लिया कीजे

दुश्मनी नुक्ता-ए-नज़र की है
दुश्मनों के लिये दुआ कीजे

अपने वादों को और तारों को
रात में लेट कर गिना कीजे

आज का दौर है सियासत का
कुछ समझ सोच के भला कीजे

जब मुसीबत का वक़्त आ जाए
हौसला और भी सवा कीजे

इसकी वक़अत न ख़त्म हो जाए
दिल का चर्चा न जा-ब-जा कीजे

छोड़िए आज बीती बातों को
काम अनमोल कुछ नया कीजे